बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचनासरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर
5. बिम्बवाद
प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर -
1 प्रस्तावना - किसी रचना में विषय-वस्तु के चित्रण को जीवन्त करने के लिए बिम्ब का प्रयोग होता है। बिम्ब हमारी इन्द्रियों को प्रभावित करने वाला काव्य तत्त्व है। ये हमारी संवेदना के तार छेड़ने के लिए हमारी इन्द्रियों का सहारा लेता है। पढ़ने के लिए आँखों की जरूरत होती है। कवि जब शब्दों के माध्यम से किसी चित्रण में वह रूप-रस-गन्ध से भर देता है, हमें वस्तुबोध के लिए चमत्कृत करता है, तब बिम्ब की सृष्टि होती है।
बिम्ब का जुड़ाव संवेदना से होता हैं। उनकी सबसे बड़ी विशेषता उनकी इन्द्रियता होती है। इसीलिए वह किसी निर्जीव वस्तु को भी सजीव की तरह प्रस्तुत करता है। उदाहरण के लिए निराला की कविता सन्ध्या सुन्दरी को देखा जा सकता है—
दिवसावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही है
वह सांध्या-सुकन्दरी, परी सी,
धीरे धीरे धीरे।
निराला ने इस कविता में साँझ की बेला का चित्रण एक सुन्दरी के रूप में किया है। इस कविता को पढ़ते हुए आँखों के सामने एक सुन्दरी का बिम्ब बनने लगता है। उसका एक रूप उभरने लगता है।
2. बिम्ब की अवधारणा - वस्तुतः बिम्बों का महत्त्व कवि सदा से स्वीकार करते हैं। एक काव्यान्दोलन के रूप में बिम्बवाद के प्रवर्तन का श्रेय अंग्रेजी कवि टी0ई ह्यूम (सन् 1883 - 1९17) को है। उनके विचारों से प्रभावित कुछ अंग्रेजी तथा अमेरिकी कवियों-- एजरा पाउण्ड, ऐमी लॉवेल, हिल्डा डूलिटिल, रिचर्ड एल्डिंगंटन आदि ने सन् 1९12 के आस-पास काव्य लेखन का एक कार्यक्रम तय किया, जिसमें उन्होंने भावावेगपूर्ण, संगीतमय रोमानी काव्यभाषा के स्थान पर चुस्त, तराशी हुई, सटीक तथा रोमन क्लासिकी काव्य के अनुशासन तथा सन्तुलन और चीनी, जापानी काव्य की सूक्ष्मता, संक्षिप्ति और सुगठन को अपनाया। एजरा पाउण्ड तथा ऐमी लॉवेल इस समूह के सबसे सक्रिय सदस्य कहे जा सकते हैं। वे सभी कवि थे और बिम्बवाद के सिद्धान्तकार भी। सन् 1९15 में उन्होंने अपना एक घोषणा-पत्र निकाला और सन् 1९24 में उनकी कविताओं का सहयोगी संकलन 'स्पेकुलेशन' नाम से प्रकाशित हुआ।
काव्यगत में बिम्ब शब्द का प्रयोग प्रायः छाया, प्रतिच्छाया तथा अनुकृति आदि के लिए किया जाता है। आधुनिक काल में इस शब्द का प्रयोग व्यापक तथा विशिष्ट अर्थों में होने लगा है। हिन्दी में यह शब्द अंग्रेजी के 'इमेज' के पर्याय के रूप में प्रयुक्त होता है और उसी अर्थ में ग्रहण किया जाता है। कहना चाहिए कि अपने वर्तमान स्वरूप तथा अर्थ में यह शब्द यूरोपीय साहित्य के समानान्तर ही हिन्दी में व्यवहृत होने लगा है।
3. बिम्ब पर विचार - मोनियर विलियम्स ने 'संस्कृत-इंग्लिश कोश' में बिम्ब को व्याख्यायित करते हुए कहा है कि 'भारतीय सन्दर्भों में इस शब्द का रूपान्तर सूर्य चन्द्रमण्डल, प्रतिच्छवि,? प्रतिच्छाया, प्रतिबिम्बित अथवा प्रत्यंकित रूप चित्र आदि के अर्थ में माना गया है।
बिम्ब एक ऐसी चेतन स्मृति है जो विचारों के मूल उत्तेजना के अभाव में उन विचारों को सम्पूर्णत: अथवा अंशतः प्रस्तुत करती है। तदानुसार बिम्ब का सम्बन्ध मानव-मन की चेतन स्मृतियों से है। कई स्मृतियाँ विस्मृति के गर्भ में विलीन हो जाती हैं, अथवा मानस के किसी स्तर में स्वयं को लीन कर देती हैं। इस प्रकार अवचेतनगत विस्मृतियाँ फ्रायड की अवधारणाओं के अनुसार अन्य सृजनों का कारण तो बन सकती है, किन्तु बिम्ब निर्माण के लिए चेतन मन की आवश्यकता पड़ती है; क्योंकि उसका सीधा सम्बन्ध रूप, रंग और आकार से है, जिसके कारण वह विभिन्न मानवेन्द्रियों का विषय बनता है।
बिम्ब शब्द के व्युत्पत्तिपरक तथा कोषगत अनेक अर्थ हैं- किसी पदार्थ की मानचित्र, प्रतिकृति, कल्पना अथवा स्मृति में उपस्थित चित्र जिसका चाक्षुष होना अनिवार्य नहीं है, का उपयोग किसी व्यक्ति, वस्तु या प्रसंग के मूर्त और दृष्ट प्रत्यंकन के लिए करना बिम्ब निर्माण है। एक पदार्थ के लिए किसी मूर्त अथवा अमूर्त पदार्थ का प्रयोग, जो उसके अत्यधिक समान हो, उसे व्यंजित करता हो, जैसे मृत्यु के लिए निद्रा का प्रयोग, बिम्ब निर्माण कहलाता है।
वस्तुत: बिम्ब, बिम्ब होता है, मूर्त का भी, अमूर्त का भी, वह स्वयं कभी अमूर्त नहीं होता, क्योंकि उसका माध्यम ऐन्द्रिक होता है। व्हैले ने माना है कि 'उसमें आन्तरिक सादृश्य की अभिव्यक्ति की जाती है, पुनर्निर्माण होता है, अतः उसके लिए क्रियाशील एवं उर्वरा कल्पना शक्ति की आवश्यकता होती है; और क्योंकि वह भावगर्भित होता है, भावना की पुननिर्माण होता है व आन्तरिक सादृश्य की अभिव्यक्ति होता है, अत: उसमें भाव-तत्त्व, अनुभूति, राग-प्रेरणा अवश्य निहित होती हैं।
4. बिम्ब का उद्देश्य – बिम्बों का प्रयोग साहित्य में आरम्भ से होता रहा है। प्रतीकों के विपरीत बिम्ब इन्द्रिय- संवेद्य होते हैं अर्थात् उनकी अनुभूति किसी न किसी इन्द्रिय से जुड़ी रहती है। इसीलिए साहित्य में हमें दृश्य-बिम्बों के साथ-साथ श्रव्य, घ्राण और स्पर्श- बिम्बों का प्रयोग भी मिलता है। विश्व के परिवेश से रचनाकार कुछ दृश्य, कुछ ध्वनियाँ, कुछ स्थितियाँ उठाता है और अपनी कल्पना, संवेदना, विचार तथा भावना के योग से उन्हें तराश कर बिम्ब का रूप देता है। अपने कथ्य को संक्षेप, सघन रूप प्रस्तुत करने के लिए, अपनी बात का प्रभाव बढ़ाने के लिए और किसी स्थिति को जीवन्त कर पाठक के सामने रख देने के लिए रचनाकार बिम्बों का प्रयोग करता है।
5. बिम्ब और कविता - काव्य बिम्ब को परिभाषित करते हुए लिविस का कहना है कि "वह एक प्रकार का भावगर्भित शब्दचित्र है, जो किसी न किसी रूप में इन्द्रिय बोध से सम्बन्धित होता है। उनके अनुसार, "बिम्ब का सीधा सम्बन्ध अभिव्यक्ति तथा मानस पट पर उभरने वाले चित्रों से है। कवि की अनुभूतियाँ बिम्ब के माध्यम से ही प्रेषित होती हैं। उनके द्वारा प्रयुक्त शब्दों के माध्यम से मन पर कुछ रंग और कुछ रेखाएँ उकेरी जाती हैं। इन रंगों और रेखाओं से निर्मित संश्लिष्ट रूपाकार ही काव्य बिम्ब हैं। यह रूपाकार होने के साथ-साथ संवेदनात्मक भी होता है।"
कविता में अवतरित होकर भी बिम्ब अपनी मूल विशेषताओं और भाव सन्दर्भों को सुरक्षित रखते हैं। काव्य-बिम्बों तथा सामान्य मानस - बिम्बों में एक मूलभूत अन्तर है। मानसः बिम्बों का मानव के विभिन्न मनोविकारों से अप्रत्यक्ष सम्बन्ध होते हुए भी, उसे प्रत्यक्षः सिद्ध करना कठिन होता है, किन्तु काव्य- बिम्ब मानव मन के साथ-साथ जीवन तथा जगत के विभिन्न रहस्यों तथा आवेग संवेगों का प्रकाशन करते हैं। काव्य- बिम्ब के लिए अनुभूति, भावना और कल्पना का सहज के साथ-साथ प्रयासरत होना भी आवश्यक होता है, जबकि मानस: बिम्बों के निर्माण में इन तत्त्वों का रेखांकन नहीं होता। काव्य- बिम्ब स्थूल और भौतिक सत्यों के अतिरिक्त पारलौकिक विचारों की अभिव्यक्ति के भी साधन बनते हैं, क्योंकि मानवीय कल्पना की सभी सीमाओं को बिम्बों में निबद्ध किया जा सकता है।
वस्तुतः काव्य-बिम्ब को काव्यालंकार अथवा काव्य की बाहरी रूपसज्जा की भाँति आरोपित नहीं समझना चाहिए। वह तो कविता का समग्रता में एक आंगिक अवयव हुआ करता है। इसी सन्दर्भ में एजरा पाउण्ड मानते हैं- "बिम्ब वह है जो काल की प्रासंगिकता में बौद्धिक और भावात्मक संरचनाओं को उपस्थित करता है। "
बिम्ब कविता में मात्र भावात्मक संरचनाएँ ही उपस्थित नहीं करता, काव्य में उसकी स्थिति अत्यन्त व्यापक एवं वैज्ञानिक है। इसीलिए आई0ए0 रिचर्ड्स ने बिम्ब का जो स्वरूप स्थिर किया वह इस दृष्टि से अधिक विचारणीय है- “बिम्ब एक दृश्य - चित्र, संवेदना की एक अनुकृति एक विचार, एक मानसिक घटना, एक अलंकार अथवा दो भिन्न अनुभुतियों के तनाव से बनी एक भाव स्थिति ..कुछ भी हो सकता है।
केदारनाथ सिंह कहते हैं कि "एक सफल बिम्ब एक पूर्ण परिपक्व विचार की अपेक्षा उसकी प्राक्परिपक्कावस्था के घात प्रतिघातों, अन्तर्विरोधी और विकल्पों को अधिक गहराई से प्रतिबिम्बित करता है।
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- प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
- प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
- प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
- प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
- प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
- प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
- प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
- प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
- प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
- प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
- प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
- प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
- प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
- प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
- प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
- प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
- प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
- प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
- प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
- प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
- प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
- प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
- प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
- प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
- प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
- प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
- प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
- प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
- प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
- प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
- प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
- प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
- प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
- प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
- प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
- प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
- प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
- प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
- प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
- प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
- प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
- प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
- प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
- प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
- प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
- प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?